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मृगतृष्णा
जल ही जीवन है;
एक सरल. किंतु सारगर्भित वाक्य।
परंतु क्या केवल घोषणाएँ,
लघुपट, बैनर या संदेश काफी हैं
इस वाक्य को सार्थक करने में
कल ही स्कूलों में बच्चों को
यही तत्वज्ञान समझाया गया,
सिर्फ एक बूँद ही काफी है
प्यासे की तृष्णा मिटाने को।
फिर क्यों नलों से बहते अश्रु
देखकर भी नहीं पोंछते हम जानकार
बहती हुई यह जलधारा
हमको मुँह चिढ़ाती है
हमारे दोगुलेपन पर मानो
वही अनगिनत आँसू बहाती है।
जल है तो कल है
यह भी नारा पुराना है,
बरसों टैंकरों से बहता पानी
सड़कों पर ज्यों लाता निखार है।
बूँद-बूँद टपकता जल ही
कल पर हमारे हँसता है,
कथनी-करनी में इतने अंतर को,
वो भी शायद समझ न पाता है।
पिलाना जल, पुण्य का काम
सुना था मैंने बचपन से;
पर धूप से त्रस्त इक पगले को
वंचित देखा पानी से।
उसकी तड़प और लोगों की झिड़क-
देख रहे थे वो जो साक्षर थे।
देख तमाशा हैवानियत का ये
स्तब्ध रह गया बोतल का जल,
अब क्या रोना इंसानियत हेतु
अर्थी-सजा श्मशान-राह में।
अब भी वक्त नहीं गुजरा है
मानव तू अब भी जाग;
पछतावे के आँसू का भी
वरना जल सूखा पड़ जाएगा।
अब नहलाओ प्रेम-स्निग्ध से,
मानव-तन को मन लौटाओ।
इस अविचारी, स्वार्थी जगत को
पावन कर, मानवीय बनाओ।
मैं-तू, तू-मैं, जड़ है हार की,
प्यार बाँटो, दया करो और फिर
जीत का परचम तुम फैराओ।
जल ही जीवन, प्रेम ही धर्म है
यह संदेश अब जब में फैलाओ।
-श्रीमती सुजाता कर्डिले
कांफ्लूएंस इंडिया
confluenceindia.blogspot.com
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