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शिक्षा एक व्यापार
कहने को तो भारत गरीबों का देश है। मगर वास्तव मे देखा जाए तो, यहाँ पर निरक्षरों की तादाद गरीबों से भी अधिक है। और अगर आप इस सोच मे जी रहे है की, समाज का सबसे वैभवशाली तबका स्वमपूर्ण रूप से शिक्षित है, तो आप की जानकारी के लिए ये बता दु, की आप गलत है। समाज के उच्चबृत्त विभाग का एक हिस्सा आज भी निरक्षर है। हाला की अपना भारत, धीरे धीरे शिक्षित हो रहा है। मगर अफसोस, की कररपसन के इस दाइरे मे अब अपनी शिक्षा भी आ चुकी है।
वर्तमान दिनो मे हम अख्सर ऐसी मुद्दो पर चर्चा करते है, जो की हमारे देश के लिए,इसके प्रगति के लिए और, खास कर इसकी शिक्षा के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। हाला की भारत सरकार ने भी इस कार्य मे अपना बराबर योगदान दिया है। लेकिन, कुछ परेशानिया अभी भी ऐसी है, जिसके समाधान को तलाशने मे लाखों युवाओं ने अपना कैरियर गवाया है। सरभे के दौरान पता लगे इन समस्याओं मे से हमे कुछ समस्याए ऐसी भी मिले,जिनहोने विद्यार्थियों का जीना मुश्किल कर रक्खा है। मगर, हमारी सरकार शायद, अब भी इन बातों से अंजान है।
जानी मनी समस्याओं के आड़ मे छिपी, जिन समस्याओं से आज के युवा सबसे ज़्यादा जुज़ रहे है, प्राइवेट टीउसन उन्ही मे से एक है।
आजकल ज़्यादातर विद्यार्थि अपने परीक्षाओं मे अधिक अंक लाने के चक्कर मे इन प्राइवेट कोचिंग सेंटर्स मे भर्ती होते है, और बोहुत ही बुरी आदत के शिकार बन जाते है। ज़्यादातर बच्चे आज अपनी किताबों से ज़्यादा, टीउसन मे मिले नोट्स पर भरोसा रखते है। अध्यापकों का ये कहेना है, के ‘‘आजकल विद्यार्थियों को अपने कक्षा मे बैठने से ज़्यादा ज़रूरी टीउसन मे बैठना लगता है। नोट्स बनाने के चक्कर मे वो पूरी किताब को पड़ते ही नहीं है। अगर वे नोट्स के बदले, अपनी टेक्स्ट बूक को ही अच्छे से पड़ले, तो वो उनके परीक्षाओं मे काफी अच्छा प्रदर्शन कर सकते है’’। लेकिन इस सबके बावजूद भी, यहा एक और सवाल पैदा होता है- की आखिर किउ विद्यार्थी ज़्यादातर प्राइवेट टीउसनस की तरफ आकर्षित हो रहे है? क्या इसका कारण सिर्फ ज़्यादा अंको की लालसा है? या फिर,इसके पीछे है कोई और वजह? इस बात की सम्पूर्ण पुस्टिकरण हेतु हमने कुछ छात्रो से बात की, और उन से हमे कुछ ऐसे वजह जानने को मिले, जो हमारे देश के लिए चिंता का विषय है।
विद्यार्थियों का ये कहेना है के, ‘उन्हे अपने स्कूल मे से जितना तथ्य प्राप्त होता है, व उनके तैयारी के लिए काफी नेही होता’। इस वजह से उन्हे टीउसनस का साहारा लेना ही पड़ता है। और अगर व ऐसा न भी करे तो, उसका असर सीधा उनके अंको पर ही पड़ता है। ब्यापार के इस दौर मे, शिक्षा भी आज बिकने लगी है। जिस ग्यान के अधिकारी ये विद्यार्थी है, वही ग्यान उन्हे पैसो से खरीदना पड़ रहा है। लेकिन इस धनदे मे सबसे ज़्यादा अगर किसी का फायदा है, तो वो है स्कूल टीचेर्स द्वारा खुले गए प्राइवेट टीउसनस का। और अगर विद्यार्थी ऐसा करने से माना कर दे, तो इसका बदला उनके शिक्षक सीधा परीक्षा के अंको मे से ही निकालते है। गुजरे कुछ वर्षो से चला आ रहा इस काले धनदे के विरोध के तहत, कई विद्यार्थियों का भविष्य नष्ट हो चुका है। अब ये हमे तय करना है,की क्या ये भ्रस्टाचार यू ही चलता रहेगा, या अपना इमान अब कुछ कहेगा।
Indranil Nandi
कांफ्लूएंस इंडिया
confluenceindia.blogspot.com
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